जून १९७५ की बात है। पान सुपारी एक्सपोर्ट करने वाला एक व्यपारी ढाका बांग्लादेश पहुंचा यह उसकी मुलाकात बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रेहमान से हुयी। मुजीब को लगा की बात व्यापर पर होगी लेकिन बिच मीटिंग में उस व्यपारी ने मुजीब की ऐसी बात बताई जो मुजीब के पेरो से जमीं खिचका सकती थी। इस आदमी ने मुजीब हो बताया की बोहत जल्द उनका तक्था पलट होने वाला है और इतना ही नहीं तख्ता पलट कोण करने वाला है ये भी उस शक्श को पहले से पता था। एक घंटे चली मीटिंग में राष्ट्रपति को समझने की खूब कोशिश हुयी लेकिन सब फ़ैल मुजीबुर रेहमान माने नहीं और उन्हें यकीन ही नहीं हुआ और ठीक एक हफ्ते बाद मुजीबुर और उनके परिवार के चालीस लोगो को हत्या हुयी। और इसको अंजाम दिया उसी मिल्टरी अफसर ने जिसका नाम एक हफ्ते पहले बताया गया था।
पान सुपारी का व्यापारी बन मुजीबुर से मिलने वाला सक्श कोई और नहीं R N KAV थे वही काव जिन्होंने भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ को बनाया।
R N KAV
सिक्किम और भारत
आजादी के वक्त सिक्किम एक अलग रियासत थी। वहा चोगियाल वश का राज था। आजादी के बाद सरदार पटेल चाहते थे की बाकि राजवंशो की तरह सिक्किम का विलय भी भारत में हो। लेकिन नेहरू को चीन की चिंता थी वो चीन के साथ रिश्तो में सावधानी बरत रहे थे। उन्हें लगता था की वो अगर सिक्किम के मामले में रियायत देंगे तो चीन तिब्बत पर आक्रमण नहीं करेगा। इसके बाद सिक्किम और भारत के बिच एक ट्रीटी साइन हुयी जिसके अनुसार सिक्किम भारत के एक प्रोक्टेंट राज्य बन गया यानि वह राज राजा को होगा लेकिन डिफेन्स और विदेश के मामले भारत सरकार देखेगी।
१९६४ तक ऐसे ही चला लेकिन नेहरू के मृत्यु के बाद सिक्किम के राजा पर्दैन नामग्याल स्टेटसको में बदलाव की मांग करने लगे। उनका कहना था की १९५० की ट्रीटी में बदलाव करके सिक्किम हो भी भूटान के जैसे स्टेटस मिले यानि सिक्किम को भी भूटान के जैसे एक अलग स्वतंत्र देश माना जाये। १९६७ में नामग्याल भारत आये और उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मुलाकात की उसके बाद १९७० में भारत ने राजा नामग्याल को परमानेंट अस्सोसिएट का स्टेटस ऑफर किया। जब मंत्रीमंडल की बैठक में इसकी चर्चा हुयी तो आर्मी चीफ मानेकशॉ ने कहा था की आपको जो करना है करो लेकिन में सिक्किम में अपनी सेना भेजने की पूरी आजादी चाहिए। मानेकशॉ के इस कथन से हम सिक्किम की सामरिक महत्व समझ सकते है। ये इंदिरा का पहला कार्यकाल था और इस समय वो कॉग्रेस की अंदुरुनी राजनीती से झूझ रही थी और जब १९७१ का युद्ध समाप्त हुआ तो इंदिरा ने इस तरफ ध्यान दिया और एंट्री हुयी रॉ की।
रॉ की तलब करते हुए इंदिरा ने रॉ चीफ काव से पूछा की क्या तुम सिक्किम का कुछ कर सकते हो। इंदिरा की मंशा थी की सिक्किम का भारत में पूरी तरह विलय कर दिया जाये। उसके तुरंत बाद काव ने एक प्लान बनाया और इंदिरा के सामने पेश किया। इंदिरा ने इस प्लान को मंजूरी दे दी। प्लान ये था की चोगियाल राजतन्त्र को धीरे धीरे कमजोर किया जाये और उसके लिए सिक्किम की स्थानीय राजनैतिक पार्टियों की मदद ली जाये। तब सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर हुआ करते थे काजी नेजूप दोरजी। इन लोगो ने पहले से राजशाही के खिलाफ एक मुहीम छेड़ रखी थी और जनता भी लोकतंत्र बहाली के पक्ष में थी। और अधिकांश लोग चाहते थे एक इलेक्शन होना चाइये और काजी नेजूप दोरजी को चुन लिया जाये। और उसके बाद विधान सभा में प्रस्ताव पेश हो और सिक्किम का भारत में विलय हो जाये। लेकिन ये सब कहना जितना आसान है उतना था नहीं।
Indira gandhi
सिक्किम ऑपरेशन
काव ने अपने दो अफसर काम पे लगाए एक P N बनर्जी और दूसरे अजित सिंह सयाली। सयाली तब गंगटोक में अफसर ऑन स्पेशल ड्यूटी पे तैनात थे। इसके अलावा एक और सक्श था जो इस पुरे ऑपरेशन में नजर रख रहा था वो थे सिक्किम में रॉ के हेड GVS सिद्धू। १९७३ में दो ऑपरेशन एक साथ शरू किये गए जिनका नाम दिया गया जनमत और त्वलाईट। असल ये ये दो नाम दिए गए थे सिक्किम में दो नेताओ को काजी और KG प्रधान। फरवरी १९७३ में बनर्जी के टीम ने काजी और KG प्रधान से मुलाकात की और सिक्किम प्लान शरू हुआ।
इस दौरान प्रधान को एक अमेरिकी स्पाई का पता चला जो अमेरिका के कोलकाता स्थित कौंसलेट में तैनात था इस आदमी का नाम था पीटर बारले। हुआ यु की बारले को सिक्किम में एक मेहमान के तोर पे बुलाया गया तब प्रधान के कान खटके की एक अमेरिकी राजनयिक अफसर सिक्किम में क्या कर रहा था। पता चला के पीटर चोग्याल राजा से ही नहीं काजी से भी मिले थे। बनर्जी ने सीधे काव को इस बात की जानकारी दी और इसके तुरंत बाद दिल्ली में रॉ की एक हाई लेवल मीटिंग बुलाई गयी और उसमे तय हुआ की इससे पहले सिक्किम एक अंतराष्ट्रीय मुद्दा बन जाये सिक्किम ऑपरेशन को और तेजी दी जाये।
तय हुआ की जनता के विरोध इस लेवल तक पहुंचाया जाये की चोग्याल को भारत की मदद मांगने पे विवश होना ही पड़ेगा। इसके साथ ये भी तय हुआ की भारत के सेना सिक्किम में कुछ फ्लेग मार्च कर ले ताकि लोकतंत्र समर्थक जनता को ये सन्देश जाय की भारत उनके साथ है। ऐसा इसलिए भी जरुरी था की १९४९ में भी सिक्किम में विद्रोह के स्वर उठे थे और भारत के जो भी मदद बनती थी वो की।
४ अप्रेल १९७३ को एक खास घटना हुयी उस दिन चोग्याल राजा का पचास वा जन्मदिन था। राजभवन में जश्न चल रहा था वही सड़को में राजशाही के विरोध में पर्दशन हो रहे थे। उस दौरान चोग्याल राजा के बेटे तेनज़िंग महल के रस्ते में जा रहे थे और पर्दशनकारियो ने उन्हें बिच में ही रोक लिया तब तेनज़िंग के गार्ड्स ने पर्दशनकारियो पर गोली चला दी और दो लोगो की जान चली गयी। सिक्किम नेशनल कांग्रेस के नेता काजी ने इसको बड़ा मुद्दा बनाते हुए सिक्किम ने चक्का जाम और हड़ताल कर दी। अगले कुछ दिनों तक सिक्किम में भारी लूटपाट हुयी और मज़बूरी में चोग्याल को भारत से मदद मांगनी पड़ी। ८ अप्रेल को भारत और सिक्किम के बिच एक लिखित समझौता हुआ जिसके अनुसार भारत सिक्किम के एडमिस्ट्रेशन को अपने हाथ में लेगा और सिक्किम पुलिस भारतीय सेना के अंडर काम करेगी। इसके बाद राजनैतिक पार्टियों ने सिक्किम बंद वापस लिया और इसके साथ एक और समझौता हुआ जिसके अंतर्गत चोग्याल राजा के पास सिर्फ राजभवन और वहा के गार्ड्स का नियंत्रण रहेगा।
Sikkim King
मामला काफी हद तक सुलझ चूका था लेकिन काव के सामने एक और परेशानी थी। इंदिरा ने काव से कहा से था की सिक्किम का भारत में पूर्ण विलय करना है और इससे कम में वो किसी भी सूरत में राजी नहीं होने वाली थी यानि राजभवन और वहा के गार्ड्स भी भारत के नियंत्रण में लाये जाने थे। इसके अलावा एक और मुद्दा था जिसपे पेच फस सकता था। सिक्किम में केवल राजशाही एक एक पक्ष नहीं था वहा भोटिया जनजाति, नेपाली जनता भी काफी ताकत रखती थी। चुनाव होने की स्थति में अगर ये पक्ष जयादा सीट अपने कब्जे में कर लेते तो सिक्किम का भारत में विलय क प्लान खटाई में भी पड़ सकता था। इसलिए काव ने बनर्जी के एक और टास्क दिया और उसमे पुरे प्रचार किया गया की सिक्किम और दार्जिलिंग के विकास में जमीं आसमान का फर्क है और इस काम के लिए सिक्किम का भारत की संसद में सिक्किम का प्रतिनिधित्व जरुरी है जो बिना भारत में विलय के संभव नहीं होगा। काव के लिए टास्क था की चुनाव के बाद विधानसभा में कम से कम ७० प्रतिशत लोग भारत के पक्ष के रहे ताकि विलय में कोई दिक्कत पेश न आये।
सिक्किम ने जनमत संग्रह
१९७४ में चुनाव हुए और काव की इच्छा अनुसार काजी पे पार्टी को भारी बहुमत मिला। चोगियाल तो अब अंदाजा हो चूका था की राजभवन उनके हिस्से में नहीं आना है इसलिए उन्होंने इस मामले को अंतराष्ट्रीय तूल देना शरू किया और इसके जवाब में रॉ के सिक्किम ऑपरेशन का आखरी हिस्सा शरू किया जिसमे था की बिना खून खराबे के राजभवन नियंत्रण में आये। और इस काम की शरुआत विधानसभा से होनी थी जहा काजी की पार्टी में एक एक्ट गोवेर्मेंट ऑफ़ सिक्किम सदन में पेश किया और ये एक्ट पारित हुआ और सिक्किम भारत के अस्सोसिएट स्टेट बन गया। पूर्ण राज्य बनाने के लिए रेफरेंडम जरुरी था और उससे पहले के जरुरी काम था राजभवन को अपने नियंत्रण में लेना। जहा भारी मात्रा में सिक्किम के गार्ड्स तैनात थे और ये सब राजा पे प्रति अपनी निष्ठां रखते थे। बिना विधानसभा के अनुमति के सेना सीधे राजभवन पर कब्ज़ा नहीं कर सकती थी।
काव के प्लान के अनुसार गंगटोक में विरोध पर्दशन शरू हुए जिसमे मांग थी की राजभवन को राज्य के अधीन किया जाये और सिक्किम गार्ड्स को वहा से हटाया जाये। इसके बाद एक योजना तैयारी हुयी जिसके अनुसार चोग्याल को राजभवन से हटा के इंडिया हाउस ले जाया जायेगा और बाद में उनको गंगटोक के बहार के गैस्ट हाउस में ट्रांसफर किया जायेगा। ये सब तय होने के बाद काजी ने भारतीय अधिकारियो को दो पत्र लिखे जिसमे उन्होंने सिक्किम में सेना के हस्तक्षेप की मांग की और इसके बढ़ ८ अप्रेल को ब्रिगेडियर दीपेंद्र सिंह के नेतृत्व में सेना के तीन बटालियन राजभवन पहुंची। सिक्किम गार्ड ने थोड़ा विरोध दिखाया लेकिन २० मिनिट में अंडर ही राजभवन को कब्जे में ले लिया गया। और इसके बाद पुरे सिक्किम में सेना के देख रेख में एक रेफरेंडम कराया गया और ९७% जनता ने भारत में विलय के पक्ष में मतदान किया ।
और १६ मई १९७५ को सिक्किम आधिकारिक रूप से भारत का बाईसवा राज्य बन गया।
Sikkim
Read More – विजय नगर हिन्दू साम्राज्य का अंत कैसे हुआ
Comments