वास्को डी गामा ने कैसे ढूंढा भारत को

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वास्को डी गामा

छ टोपिया मूंगे की चार माला चीनी का एक बक्शा दो तेल के पीपे दो पीपे शहद के और एक थान कपडे का। ये उन चीजों की लिस्ट जो वास्को डी गामा ने कालीकट के उतार कर वहा की राजा झामोरिन को पेश की। जैसे ही इन चीजों की दरबारियों की देखा सब की हसी छूट गयी क्युकी ये दोनों की बिच पहली मुलाकात नहीं थी उससे दो दिन पहले जान झामोरिन की मुलाकात वास्को डी गामा से हुयी थी जब उससे पूछा गया की किस लिए आये हो तो उसने जवाब दिया था की में पुर्तगाल की राजा का प्रतिनिधि हूँ। और पुर्तगाल की राजा की पास धन दौलत की भंडार है उनके पास असीम दौलत है और उन्हें किसी भी चीज की कमी नहीं है। उन्होंने मुझे भेजा है दूसरे देश की ईसाई राजाओ से संधि करने की लिए। पुर्तगाली पहली बार जब कालीकट में उतरे तो उन्हें लगा कालीकट में ईसाई राजाओ का राज है। इतने अदने से तोफे देख कर राजा ने पूछा की तुम क्या ढूंढने आये हो आदमी या पत्थर। क्युकी झामोरिन की पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। 

वास्को डी गामा झामोरिन के दरबार में
वास्को डी गामा झामोरिन के दरबार में

उधर कालीकट में रह रहे अरबी व्यापारियों को वास्को डी गामा के भारत आने का असली कारन अच्छे से पता था। कुछ दिन बाद उन्होंने राजा के कान भर दिए की ये कोई राजा का प्रतिनिधि नहीं कोई समुंदरी लुटेरा है। और उससे मज़बूरी में निराश हो कर वास्को डी गामा को लौटना पड़ा। उसके बाद वो एक बार फिर भारत आया अपनी इस यात्रा के चार साल बाद और इस बार वो खाली हाथ नई आया और उसके साथ 1600 लोग और 20 जहाजों का बेडा था। 

1481 में जॉन द्वितीय पुर्तगाल का राजा बना और राजा बनते ही उसने देखा की पुर्तगाल के खजाना खाली है और पुर्तगाल के कुलीन राईस ऐश फरमा रहे है। कुलीन वर्ग दिनों दिन ताकतवर होते जा रहा था और  राजा की ताकत सिमित रह गयी थी। ऐसे में उसने तय किया की ताकत बढ़ाने का एक ही तरीका है राजकीय कोष को भरना। सबसे पहले उसने अफ्रीका के साथ चलने वाले सोने और गुलामो के व्यपार को बढ़ाया फिर उसकी नजर गयी मसालों के व्यपार पर। तब एशिया के जमीनी रास्तो के जरिये मसालों का व्यापर होता था। 

बिच में ओट्टोमन साम्राज्य द्वारा भारी टैक्स वसूला जाता था और यूरोप के लिए मसालों का आयत बोहत महंगा हो जाता था। पश्चिमी देश नहीं चाहते थे की मसालों के व्यापार गैर ईसाईयो का नियंत्रण रहे इसलिए इनके द्वारा एक नए रिश्ते की खोज होने लगी। जमीन के अलावा दूसरा रास्ता था समुन्द्र का और इसके लिए पुरे अफ्रीका के पर करना पड़ता था। इस काम के लिए राजा ने कई जासूस लगाए।  एक जहाजी अफ्रीका को अंतिम चोर तक जेक आया और उसने बताया की वहा से रास्ता उत्तर पूर्व की तरफ जाता है और शयद वही भारत है। 

वास्को डी गामा
वास्को डी गामा

इसी बिच 1495 में जॉन द्वितीय की मोत के बाद मैनुअल पुर्तगाल के राजा बने। और उन्होंने राजा जॉन के काम को जारी रखा और भारत का रास्ता ढूंढने के लिए उन्हें जरुरत लगी एक जहाजी की जो लब्मी दुरी की यात्राओं का महारथी हो। इसी खोज बिन में राजा को वास्को डी गामा का पता चला। वास्को डी गामा का जन्म 1460 में पुर्तगाल के सायनस शहर में हुआ था। उसके पिता शाही किल्ले के कमांडर थे और माँ भी कुलीन वर्ग की थी। इसके चलते वास्को डी गामा को पुर्तगाली नौसेना में शामिल होने का मौका मिला। इस दौरान उसने काफी नाम भी कमाया और नौसेना में रहने के बाद वास्को डी गामा की गिनती काफी नामी जहाजियो में होने लगी। और इसके चलते उसने समुंदरी यात्राओं के बारे में काफी अच्छा खासा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 

किंग मैन्युअल के आदेश पे 1497 में अपनी यात्रा शरू की। वो अपने साथ चार जहाज 171 आदमी और तीन साल का राशन लेके रवाना हुआ। यात्रा के पहले पड़ाव में उसको कोई दिक्कत नहीं हुयी क्योंकी ये रास्ता जाना पहचाना था। दक्षिण पछिम अफ्रीका के देश सेरा लीओन में उसने यात्रा का पहला चरण पूरा किया उसके बाद उसने 9000 की दुरी उसने 6 महीने में पूरी की और अफ्रीका के दक्षिणी छोर पे पंहुचा। इसके बाद आगे यात्रा करते हुए वो मोजाम्बिक द्वीप पे पंहुचा क्यों की अब नया रास्ता शरू हो चूका था। 

मोजाम्बिक अरब साम्राज्य के अधीन था और ये द्वीप अरबी व्यापरियों के ट्रेड रूट के एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। मोजाम्बिक द्वीप पे रहने वाले सब मुसलामन थे और ये कही वास्को डी गामा के जहाजों पे हमला न कर दे इसलिए वो सब यहाँ भेष बदल कर रहे। इस दौरान उसने मोजाम्बिक के सुल्तान से मुलाकात की ताकि पुर्तगाल और मोजाम्बिक के बिच एक ट्रेड ट्रीटी हो सके। लम्बी यात्रा पर निकले वास्को डी गामा को ये ध्यान नहीं रहा की यहाँ के सुल्तान उससे तोफे की अपेक्षा रखते है। 

वास्को डी गामा सुल्तान के सामने कोई कीमती चीज तोफे के रूप में नहीं दे सका तो सुल्तान ने कोई तरजीह नहीं दी। जल्दी वास्को दीं गामा को स्थानीय लोगो से खतरा महसूस होने लगा तो उसने जल्द से जल्द आगे बढ़ने में भलाई समझी। इतना ही नहीं जाते जाते उसने अपनी जहाज की तोपों से द्वीप पे गोले भी दागे। आगे के पड़ाव में वो मोम्बासा द्वीप पंहुचा वहा भी उसके साथ वैसा ही बर्ताव हुआ जैसा मोजाम्बिक में हुआ था। इसलिए उसने आगे बढने में ही भलाई समझी। यहाँ से निकलने के बाद वो मालिन्दी के तट पे पंहुचा और यहाँ के सुल्तान की मोम्बासा के सुल्तान से दुश्मनी थी तो जब उसे पता चला की वहा वास्को डी गामा के के साथ क्या सलूक हुआ तो उसने पुर्तगालियों के स्वागत किया। 

वास्को डी गामा का रूट
वास्को डी गामा का रूट

अब तक वास्को डी गामा को भारतीय व्यापारियों की कुछ कुछ खबरे मिलने लग गयी थी। जिससे उसे पता चला की वो सही रस्ते पे बढ़ रहा है।  मालिन्दी से आगे की यात्रा के लिए उसने कुछ स्थानीय लोगो को अपने साथ लिया और ये लोग मॉनसून की हवाओ का रुख जानते थे इसलिए आगे की यात्रा में मददगार साबित हुए। यहाँ से आगे बढ़ते हुए वो कालीकट पंहुचा और वहा कपरू तट पे डेरा डाला। कालीकट में जब पुर्तगाली पहली बार उतरे तो उन्हें लगा की यहाँ के लोग ईसाई है। 

वास्को डी गामा ने लिखता है की यहाँ के लोग लोभी और अज्ञानी है। यहाँ के लोग ऊपर बदन खुला रखते है और कमर के निचे कपडा लपेटते है। लोग कान छिदवाते है और उसने सोना पहनते है। यहाँ की औरते काली और नाटे कद की है तो गले और हाथो में काफी सोना पहनती है। जब वास्को डी गामा वहा पंहुचा तो कालीकट का राजा अपनी राजधानी में नहीं था जिसे वहा के लोग झामोरिन कहते है। 

जब राजा को खबर मिली के एक विदेशी बेडा उसके तट पे पंहुचा है तो वो तुरंत कालीकट आया और उसने वास्को डी गामा से मुलाकात की और इस मुलाकात के साथ ही वास्को डी गामा भारत की खोज में सफल हो गया था लेकिन वो कालीकट और पुर्तगाल के बिच व्यापार समझौता करवाने में नाकाम रहा। 

कालीकट में रहने वाले अरब व्यापारियों के डर था की पुर्तगाली न केवल मसालों के व्यापार के कब्ज़ा कर लेंगे बल्कि वो यहाँ ईसाई धर्म का प्रचार भी करेंगे। और इसलिए उन्होंने झामोरिन के कान भरने शरू कर दिए। वास्को डी गामा जब झामोरिन के लिए कोई तोहफा नहीं पेश कर पाया तो झामोरिन ने उन्हें नजरबन्द कर लिया और सारे जहाजों को अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद पुर्तगालियो को कहा गया की वो जब तक नहीं निकल सकते जब तक वो अपना सारा का सारा सामान उतार कर बेच नहीं देते। और उससे राजा को टैक्स नहीं देते। इसके बाद वास्को डी गामा को मज़बूरी में खाली हाथ लौटना पड़ा। 

वास्को डी गामा का रूट
वास्को डी गामा का रूट

आते हुए मानसून हवाएं साथ दे रही था लेकिन जाते हुए उसे इन हवाओ के विपरीत जाना पड़ा नतीजन पुर्तगाल पहुंचने में उसको काफी समय लग गया। इस पुरे सफर में उसके 120 लोगो की जान भी चली गयी और 51 ही सही सलामत वापस पुर्तगाल लोट पाए। कालीकट के वो कुछ थोड़े ही मसाले लेकर पुर्तगाल पंहुचा था लेकिन उन्हें बेचने से उन्हें 300 गुना मुनाफा हुआ। पुर्तगाल के लिए वो हीरो बन गया था। 

इस यात्रा के बाद राजा मेनुअल ने 1501 में जंगी जहाजों के 2 बेड़े को भेजा लेकिन इस बार भी वो झामोरिन से व्यापारी संधि नहीं कर पाए लेकिन उन्होंने कालीकट में एक फक्ट्री लगाने में कामयाबी हासिल कर ली। इसके बाद 1502 फिर से वास्को डी गामा के कमान में एक बेडा भारत के लिए रवाना हुआ लेकिन इस बार वो मिलिट्री मिसन में था। जब वो दूसरी बार कालीकट पंहुचा तो उसने दो दिन तक जहाजी तोपों से कालीकट पे गोली बारी की और कई कोशिशों के बाद जब झामोरिन झुकने के तैयार नहीं हुआ तो वास्को डी गामा को वापस लौटना पड़ा। लेकिन इसी दौरान पुर्तगली कन्नूर में एक दूसरी फैक्ट्री लगाने में कामयाब हो गए। अगली एक सदी तक पुर्तगालियों ने मसालों के व्यापार पर एक्धिकार बनाये रखा। साल 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके एकाधिकार को तोडा और धीरे धीरे फ्रेंच और डच भी इस इलाके में व्यापार करने लग गए। 

1524 में वास्को डी गामा तीसरी बार भारत आया और इस बार उसे वॉयसरॉय के रूप में नामित किया गया। लेकिन जल्द ही उसे मलेरिया हो गया और कोचीन में 1524 में उसकी मोत हो गयी। 

Read More – चंद्रा स्वामी