डॉ.राम मनोहर लोहिया – भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी समाजवादी राजनेता

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डॉ.राम मनोहर लोहिया
डॉ.राम मनोहर लोहिया - भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी समाजवादी राजनेता

राम मनोहर लोहिया  भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे। राम मनोहर लोहिया को भारत एक अजेय योद्धा और महान् विचारक के रूप में देखता है। देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख़ बदल दिया जिनमें एक थे राममनोहर लोहिया। अपनी प्रखर देशभक्ति और बेलौस तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही डॉ. लोहिया ने अपने विरोधियों के मध्‍य भी अपार सम्‍मान हासिल किया।

डॉ. लोहिया सहज परन्तु निडर अवधूत राजनीतिज्ञ थे। उनमें सन्त की सन्तता, फक्कड़पन, मस्ती, निर्लिप्तता और अपूर्व त्याग की भावना थी। डॉ. लोहिया मानव की स्थापना के पक्षधर समाजवादी थे। वे समाजवादी भी इस अर्थ में थे कि, समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था और वे अपने कार्यक्षेत्र को जनमंगल की अनुभूतियों से महकाना चाहते थे। वे चाहते थे कि, व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद, कोई दुराव और कोई दीवार न रहे। सब जन समान हों। सब जन सबका मंगल चाहते हों। सबमें वे हों और उनमें सब हों। वे दार्शनिक व्यवहार के पक्ष में नहीं थे। उनकी दृष्टि में जन को यथार्थ और सत्य से परिचित कराया जाना चाहिए। प्रत्येक जन जाने की कौन उनका मित्र है? कौन शत्रु है? जनता को वे जनतंत्र का निर्णायक मानते थे।

डॉ.राम मनोहर लोहिया - भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी समाजवादी राजनेता

समाजवादी आन्दोलन के नेता और स्वतंत्रता सेनानी डा.राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबरपुर नामक स्थान में हुआ था | उनके पिता हीरालाल लोहिया गांधीजी के अनुयायी थे | इसका प्रभाव राममनोहर लोहिया पर भी पड़ा | वाराणासी और कोलकाता में शिक्षा पुरी करने एक बाद वे 1929 में उच्च शिक्षा के लिए यूरोप गये | 1932 में उन्होंने बर्लिन के हुम्बोल्ड विश्वविद्यालय से राजनीति दर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की |

विदेशो में डा.लोहिया (Ram Manohar Lohia) को मार्क्सवादी दर्शन के अध्ययन का अवसर मिला परन्तु उनकी प्रवृति “साम्यवादी” विचारों की ओर नही हुयी और वे “समाजवादी” बनकर भारत लौटे | 1933 में जिस समय डा.लोहिया स्वदेश लौटे ,देश में गाधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा हुआ था | डा.लोहिया पुरी शक्ति के साथ उसमे कूद पड़े | वे कांग्रेस में समाजवादी विचारों का प्रतिनिधत्व करने वालो में थे | 1934 में “कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी” की स्थापना के प्रथम अधिवेशन में उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव , जयप्रकाश नारायण , अशोक मेहता आदि के साथ भाग लिया |

शिक्षा

डॉ. राम मनोहर लोहिया बचपन से ही एक तेजस्वी छात्र रहे थे। उनकी शिक्षा बंबई के मारवाड़ी स्कूल में हुई थी। मेट्रिक की परीक्षा उन्होने प्रथम श्रेणी में उत्तरीण की थी। आगे की पढ़ाई के लिए वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में गए थे। वहाँ पर उन्होने अपनी इंटरमिडिएट की पढ़ाई सम्पन्न की और फिर वर्ष 1929 में वह स्नातक की पढ़ाई करने बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी चले गए। स्नातक के बाद उन्होंने वहां से पीएचडी भी पूरी की. शोध का उनका विषय था “नमक सत्याग्रह”

भारत छोड़ो आन्दोलन

9 अगस्त १९४२ को जब गांधी जी व अन्य कांग्रेस के नेता गिरफ्तार कर लिए गए, तब लोहिया ने भूमिगत रहकर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को पूरे देश में फैलाया। लोहिया, अच्युत पटवर्धन, सादिक अली, पुरूषोत्तम टिकरम दास, मोहनलाल सक्सेना, रामनन्दन मिश्रा, सदाशिव महादेव जोशी, साने गुरूजी, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अरूणा आसिफअली, सुचेता कृपलानी और पूर्णिमा बनर्जी आदि नेताओं का केन्द्रीय संचालन मंडल बनाया गया। लोहिया पर नीति निर्धारण कर विचार देने का कार्यभार सौंपा गया। भूमिगत रहते हुए ‘जंग जू आगे बढ़ो, क्रांति की तैयारी करो, आजाद राज्य कैसे बने’ जैसी पुस्तिकाएं लिखीं।

20 मई 1944 को लोहिया जी को बंबई में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद लाहौर किले की एक अंधेरी कोठरी में रखा गया जहां 14 वर्ष पहले भगत सिंह को फांसी दी गई थी। पुलिस द्वारा लगातार उन्हें यंत्रणा दी गई, 15-15 दिन तक उन्हें सोने नहीं दिया जाता था। किसी से मिलने नहीं दिया गया 4 महीने तक ब्रुश या पेस्ट तक भी नहीं दिया गया। हर समय हथकड़ी बांधे रखी जाती थी। लाहौर के प्रसिद्ध वकील जीवनलाल कपूर द्वारा हैबियस कारपस की दरखास्त लगाने पर उन्हें तथा जयप्रकाश नारायण को स्टेट प्रिजनर घोषित कर दिया गया। मुकदमे के चलते सरकार को लोहिया को पढ़ने-लिखने की सुविधा देनी पड़ी। पहला पत्र लोहिया ने ब्रिटिश लेबर पार्टी के अध्यक्ष प्रो॰ हेराल्ड जे. लास्की को लिखा जिसमें उन्होंने पूरी स्थिति का विस्तृत ब्यौरा दिया।

1945 में लोहिया को लाहौर से आगरा जेल भेज दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने पर गांधी जी तथा कांग्रेस के नेताओं को छोड़ दिया गया। केवल लोहिया व जयप्रकाश ही जेल में थे। इसी बीच अंग्रेजों की सरकार और कांग्रेस की बीच समझौते की बातचीत शुरू हो गई।

द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत

जिस वक्त पूरा विश्व दूसरे महायुद्ध का अंत होने पर राहत की सांस ले रहा था। तब गांधीजी और दूसरे अन्य क्रांतिकारीओं को जेलवास से मुक्त कर दिया गया था। परंतु अभी भी जय प्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया करगार में ही थे। ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनने के कारण वहाँ से एक विसेष प्रतिनिधि दल डॉ. राम मनोहर लोहिया से मिलने भारत आया था, उन्होने जेल में डॉ. राम मनोहर लोहिया से मुलाक़ात भी करी थी।

उस समय पिता हीरालाल की मृत्यु हो जाने पर भी डॉ. राम मनोहर लोहिया नें सरकार की नर्मदिली स्वीकार कर के पेरोल पर, जेल से छूटने से साफ इन्कार कर दिया था।

देश का बंटवारा और भारत नवनिर्माण

डॉ. राम मनोहर लोहिया देश के विभाजन से बेहद आहत थे। उनके कई लेख इस बात की गवाही देते हैं। भारत विभाजन के दुखद अवसर पर डॉ. लोहिया अपने गुरु के साथ दिल्ली से बाहर थे। बँटवारे के बाद वे राष्ट्र के नवनिर्माण और विकास को प्रगतिशीलता प्रदान करने के लिए कार्यरत रहे।